उत्तराखण्ड हाई कोर्ट ने देहरादून के डोईवाला क्षेत्र में बहने वाली सुशुवा व एक अन्य नदी में भारी मशीनों के द्वारा खनन की अनुमति दीए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ती आलोक मेहरा की खण्डपीठ ने मामले को गम्भीरता से लेते हुए अगली सुनवाई 3 अप्रैल की तिथि नियत की है। तब तक कोर्ट ने सम्बंधित अधिकारियों से इस सम्बंध में सरकार का प्लान प्रस्तुत करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 3 अप्रैल की तिथि नियत की है। हुई सुनवाई पर खनन अधिकारियों ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि जो भी खनन हो रहा है वह रिवर ड्रेजिंग पॉलिसी में निर्धारित शर्तो के मुताबिक हो रहा है। राज्य सरकार समय समय पर इसकी मोनिटरिंग कर रही है। जिससे कि रिवर बैड को कोई नुकसान न हो। लेकिन कोर्ट ने इसे बचाने के लिए अपना प्लान पेश करने को कहा है। हुई सुनवाई पर आज सचिव खनन सहित अन्य अधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए। मामले के अनुसार देहरादून निवासी वीरेंदर कुमार व अन्य ने जनहीत याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने देहरादून के डोईवाला क्षेत्र में बहने वाली सुशुवा व एक अन्य नदी में खनन कार्य करने के लिए भारी भरकम मशीनों की अनुमती दे दी है। भारी मशीनों द्वारा खनन करने पर नदी का जल स्तर निचे बैठ गया है। साथ मे उनकी कृषि योग्य भूमि भी प्रभावीत हो गयी है। उनको सिंचाई के लिए पानी तक नही मिल पा रहा है। यही नही भारी मशीनों द्वारा खनन कार्य करने के कारण स्थानीय लोग बेरोजगार हो गए है। पहले उनको नदी में खनन करने से रोजगार मिल जाया करता था । लेकिन जब से सरकार ने भारी मशीनों को खनन की अनुमति दी है तब से स्थानीय लोग बेरोजगार हो गए हैं। जनहित याचिका में उन्होंने कोर्ट से प्रार्थना की है कि भारी मशीनों से खनन कार्य करने पर रोक लगाई जाय, उनकी कृषि योग्य भूमि को बचाया जाय और खनन कार्य मे स्थानीय लोगो को प्राथमिकता दी जाय न कि मशीनों को। सुनवाई पर राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि वर्षात के दौरान नदी में भारी मात्रा में शिल्ट ,गाद ,बड़े बोल्डर व अन्य आ जाते है। जिसकी वजह से नदी का रास्ता अवरुद्ध होकर अन्य जगह बहने लगता है। इसको हटाने के लिए मैन पावर की जगह मशीनों की जरूरत पड़ती है। इसलिए सरकार ने जनहित को देखते हुए मशीनों का उपयोग करने की अनुमति दी । ताकि नदी अपनी अविरल धारा में बहे। लेकिन इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि इसका मुख्य कारण नदियो पर हुए अवैध खनन है।
नैनीताल । उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बागेश्वर जिले की कांडा तहसील के कई गांवों सहित पूरे बागेश्वर जिले में हुए अवैध खड़िया खनन से आई दरारों के मामले में स्वतः संज्ञान लेकर पंजीकृत की गई जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की।
याचिकाओं की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश जी.नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खण्डपीठ ने राज्य सरकार से खदानों में हाईकोर्ट की रोक के बाद बचे हुए खनन सामग्री की जानकारी मांगी है । खण्डपीठ ने मंगलवार को मामले की विस्तृत सुनवाई की और खनन अधिकारी से खदानों की विस्तृत जांच करने व पुलिस अधीक्षक से कोर्ट के पूर्व के आदेशों के पालन की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश देते हुए याचिका की अगली सुनवाई की तिथि 27 मार्च नियत की है।
मामले के अनुसार पूर्व में कांडा तहशील के ग्रामीणों ने मुख्य न्यायधीश को पत्र भेजकर कहा था कि अवैध खड़िया खनन से उनकी खेतीबाड़ी, घर, पानी की लाइनें चोबट हो चुकी है। जो धन से सपन्न थे उन्होंने अपना आशियाना हल्द्वानी व अन्य जगह पर बना दिया है। अब गावों में निर्धन लोग ही बचे हुए । उनके जो आय के साधन थे उनपर अब खड़िया खनन के लोगों की नजर टिकी हुई है। इस सम्बंध में कई बार उच्च अधिकारियो को प्रत्यावेदन भी दिए लेकिन उनकी समस्या का कुछ हल नही निकला। इसलिए अब हम न्यायलय की शरण मे आये है। उनकी समस्या का समाधान किया जाय।