कोटद्वार के निंबूचौड़ में विश्व गौरेया दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने गौरेया संरक्षण पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गौरेया एक सामाजिक पक्षी है। जहां लोग बसावट करते हैं गौरेया भी वहीं अपना घोंसला बनाती है। गौरेया निर्जन स्थान या जंगलों में नहीं रहती है। आज पर्वतीय क्षेत्रों से लोगों के पलायन के साथ-साथ पक्षियों ने भी पलायन कर दिया है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि समाजसेवी विजय जुयाल ने कहा कि गौरेया संरक्षण के लिए घोंसले बना कर निशुल्क वितरित करना सकारात्मक कदम है। इसके साथ ही उन्होंने चिन्ता भी जताई है कि, पर्वतीय क्षेत्रों से लोगों के पलायन के साथ साथ पक्षी भी पलायन कर रहे हैं। गांवों में भी गौरेया अब कम दिखाई देती हैं। कोटद्वार नंदपुर निवासी पक्षी प्रेमी दिनेश चन्द्र कुकरेती ने बताया कि वे अपने घर में लकड़ी अथवा प्लाईवुड से गौरेया सहित अन्य पक्षियों के लिए घोंसले बनाते हैं। अभी तक वे 25 हजार से अधिक घोंसले बनाकर उत्तराखण्ड के अतिरिक्त दूसरे प्रदेशों में भेज चुके हैं। किशनपुर निवासी पक्षी प्रेमी प्रणिता कंडवाल कहती हैं कि वह भी कुछ सालों से गौरेया को बचाने के लिए लकड़ी के घोंसले बना रही हैं। आज उनके घर में गौरेया के कई घोंसले हैं।